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कार्तिक मास की कथा सुनने से आपके सभी दुःख व कष्टों का होगा अंत,गरीब से गरीब भी बनेगें अमीर – कार्तिक मास की कहानी

भक्त जनों माताओं बहनों सादर जय श्री कृष्ण हमारे जय गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः कृष्णाय वासुदेवाय हरे परमात्मने प्रत क्लेश ना साय गोविंदाय नमो नमः वसुदेव सतम देवम कंस नुर मदनम देवकी परमानंद कृष्णम वंदे जगदगुरु कृष्णम वंदे जगदगुरु बोलिए श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की जय आप सभी ने कार्तिक मास के अध्याय की कथा का श्रवण किया अब उसके आगे निरंतर अध्याय जो कथा आती है!

उसमें लिखा हुआ है सुनो लगाकर मन सभी संकट सब मिट जाए कार्तिक महात्म का कमल पढो सोवा अध्याय राजा पृथु ने कहा कि हे नारद जी यह तो आपने भगवान शिव की बड़ी विचित्र कथा सुना आई है अब आप कृपा करके यह बताइए कि उस समय राहु उस पुरुष से छूट कर के कहां पर गया नारद जी बोले कि उससे छूटने पर वह दूत बर्बर नाम से विख्यात हो गया और अपना नया जन्म पाकर वह धीरे-धीरे जालंधर के पास गया वहां जाकर उसने शंकर जी की सब चेष्टा कही उसे सुनकर के दैत्य राज ने सब दैत्यों की सेना द्वारा आज्ञा दी कालनेमी और शुंभ निशुंभ आदि सभी महाबली दैत्य तैयार होने  लगे एक से एक बड़े-बड़े महाबली दैत्य करोड़ों करोड़ों की संख्या में निकल युद्ध के लिए जुट पड़े महाप्रबंधक शिवजी से युद्ध करने के लिए निकल पड़ा आकाश में मेघ छा गए !

बहुत अपशकुन होने लगा शुक्राचार्य और कटे सिरवाला राहु सामने आ गए उसी समय जलंधर का मुकुट खिसक गया परंतु वह नहीं रुका उधर इंद्रा सब देवताओं ने कैलाश पर्वत पर शिवजी के पास जाकर के सारा वृतांत सुनाया और यह भी कहा कि आपने जलंधर से युद्ध करने के लिए भगवान विष्णु को भेजा था वह उसके वश वर्ती हो गए हैं और विष्णु जी लक्ष्मी जी सहित जलंधर के अधीन होकर के उनके घर में निवास करते हैं अब देवताओं को भी वहीं रहना पड़ता है अब वह बलि सागर पुत्र आपसे युद्ध करने आ रहा है !

अत एव आप उसे मार करके हम सबकी रक्षा कीजिए यह सुनक के शंकर जी ने भगवान विष्णु जी को बुला कर के कहा और पूछा कि हे ऋषिकेश युद्ध में आपने जलंधर का संघार क्यों नहीं किया और वैकुंठ छोड़ कर के आप उसके घर में कैसे चले गए हैं यह सुनकर के विष्णु जी ने हाथ जोड़ कर के नम्रता पूर्वक भगवान शंकर से कहा कि उसे आपका अंशी और लक्ष्मी का भ्राता होने के कारण मैंने नहीं मारा है यह बड़ा वीर और देवताओं से अजय है इसी पर मुग होकर मैं उसके घर में निवास करने लगा हूं विष्णु जी के इन वचनों को सुन कर के शंकर जी मुस्कुराए हंस पड़े और उन्होंने कहा कि हे

विष्णु जी आप यह क्या कहते हैं मैं उस दैत्य जलंधर को अवश्य मानूंगा अब आप सभी देवता जलंधर को मेरे द्वारा ही मारा गया जान कर के अपने स्थान को जाइए तब शंकर जी ने ऐसा कहा तो सब देवता संदेह रहित होकर के अपने अपने स्थान को अपने अपने धाम को चले गए इसी समय महा पराक्रमी जलंधर अपनी विशाल सेना के सहित पर्वत के समीप आकर के कैलाश पर्वत को घोर सिंह नाथ करने लगा दैत्यों के नाद और कोलाहल को सुनकर शिवजी ने नंदी आदि गणों को उससे युद्ध करने की आज्ञा प्रदान की कैलाश के समीप भीषण युद्ध होने लगा दैत्य अनेकों प्रकार के अस्त्र शस्त्र बरसाने लगे !

भैरी मृदंग शंख और वीरों तथा हाथी घोड़ों और रथों के शब्दों से शाब्दिक होकर के पृथ्वी कांपने लगी युद्ध में कट कर के मरे हुए हाथी घोड़े और पदलो का पहाड़ लग गया रक्त का कीचड़ उत्पन्न हो गया दैत्यों के आचार्य शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से सब दैत्यों को जीवित करने लगे यह देख कर के शिव जी के गण व्याकुल हो गए और उनके पास जाकर के सारा वृतांत सुनाया उसे सुनकर के भगवान रुद्र के क्रोध की सीमा नहीं रही फिर तो उस समय उनके मुख से बड़ी भयंकर कृत्या उत्पन्न हुई जिसकी दोनों जंघई ताल वृक्ष के समान थी वह युद्ध भूमि में जाकर के सब असुरों का चवण करने लग गई और फिर वह शुक्राचार्य के समीप पहुंची और शीघ्र ही अपनी योनि में गुप्त कर लिया फिर स्वयं भी अंतर्ध्यान हो गई शुक्राचार्य के गुप्त हो जाने से दैत्यों का मुख मलिन पड़ गया !

वे युद्ध भूमि को छोड़ कर के भागे इस पर शुंभ निशुंभ और काल नेमी आदि सेनापतियों ने अपने भागते हुए वीरों को रोका शिवजी के नंदी आदि गणों ने भी जिससे गणेश जी और स्वामी कार्तिके जी भी थे दैत्यों से भीषण युद्ध करना उन्होंने आरंभ कर दिया इस प्रकार यहां पर अध्याय 16 कार्तिक मास कथा का समापन होता है !

श्री बाल कृष्ण लाल की जय श्री श्याम सुंदर यमने महारानी की जय जगतगुरु श्री वल्लभा दीश की जय गोसाई जी परम दयाल की जय श्री गुरुदेव की जय लाडले लाल की जय आज के आनंद की जय धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो प्राणियों में सद्भावना हो विश्व का कल्याण हो सनातन धर्म की जय हो गौ माता की जय हो नगर बस्ती की जय हो आज के आनंद की जय हो कल के आनंद की जय हो परसों के आनंद की जय हो बरसों बरसों के आनंद की जय हो नमः पार्वती पते हर हर महादेव हर काल हर कंटक हर दुख हर दारिद्र्य जनों माताओं बहनों आप सभी से अनुरोध है कि हमारे इस ज्ञानवर्धक Article को अधिक से अधिक लोगों को शेयर करिएगा लाइक करिएगा कमेंट करिएगा आपके पूरे परिवार को सादर जय श्री कृष्ण सादर धन्यवाद !

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