Chhath Special: क्या रिश्ता है छठी मैया और सूर्य देव का। Relation Between Chhathi Maiya and
Chhath पर्व भारत के बिहार राज्य में मनाए जाने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है जिसकी शुरुआत दिवाली के छ दिन बाद कार्तिक शुक्ल को मनाई जाती है यही वजह है कि इसे छट कहा जाता है चार दिनों के इस अनोखे त्यौहार में दोस्तों लोग साफ सफाई का खास ध्यान रखते हैं यहां गलती की थोड़ी सी भी कोई गुंजाइश नहीं होती इस व्रत को करने के नियम इतने मुश्किल हैं जिसे पूरा करना हर एक इंसान की बस की बात नहीं है लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिर छट पूजा करते क्यों हैं?
छठी मैया कौन है
इसके पीछे की वजह क्या है मानी तो है कि छटी मैया सूर्यदेव की बहन है और उन्हीं को खुश करने के लिए जीवन के अहम भाग में सूर्य और जल की इंपॉर्टेंस को मानते हुए इन्हें साक्षी मानकर भगवान सूर्य की पूजा और उनका धन बात करते हुए देवी गंगा यमुना या किसी भी पवित्र नदी तालाब के किनारे यह पूजा की जाती है पष्ट माता यानी छटी मैया को सभी बच्चों की रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है उनकी पूजा और व्रत करने वाले लोगों के संतान की लंबी उम्र होती है मार्कंडेय पुराण में इस बात का जिक्र मिलता है कि छटी मैया प्रकृति की अधिष्ठात्री माता हैं!
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पूजा जाता है उनको संतान सुख संतान का सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी माना गया है जब बच्चे के जन्म के छठे दिन उसका छटी मनाई जाती है तब इन्हीं देवी का स्मरण किया जाता है इनकी कृपा से ना सिर्फ बच्चों को हर तरह की सुख सुविधा मिलती है बल्कि उसके जीवन में आने वाली परेशानियों का अपने आप ही निवारण हो जाता है कहते हैं पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है !
बहुत समय पहले की बात है प्रियव्रत नाम के एक राजा हुआ करते थे उनकी पत्नी का नाम मालिनी था राजा रानी को धन दौलत किसी भी चीज की कोई भी कमी नहीं थी लेकिन दुख था तो सिर्फ एक बात का कि दोनों की कोई संतान नहीं थी संतान प्राप्ति की इच्छा से राजा रानी ने महर्षि कश्यप की मदद से पुत्रे यज्ञ करवाया सच्चे मन से किया गया यज्ञ के फल स्वरूप रानी कुछ समय बाद गर्भवती हो गई 9 महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी की कोख से मरे हुए बेटे ने जन्म लिया इस बात का पता चलने पर रानी तो बेहोश हो गई!
साथ ही राजा को बहुत दुख हुआ संतान शोक में उन्होंने आत्महत्या का मन बना लिया लेकिन जैसे ही राजा ने अपने प्राण त्यागने की कोशिश की वैसे ही उनके सामने एक सुंदर देवी मां प्रकट हुई देवी ने राजा प्रियव्रत को कहा कि मैं पष्ट देवी हूं मैं सभी लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं इसके साथ ही जो सच्चे मन से मेरी पूजा करता है मैं उसके सभी तरह की इच्छाएं पूरी कर देती हूं अगर तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न का वरदान दूंगी देवी की बातें सुनकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया जिसके बाद राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की पष्ट तिथि के दिन ही देवी छटी की पूरे विधि विधान से पूजा की इस पूजा से फल स्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई तभी से हर कोई पुत्र पाने के लिए यह का पावन त्यौहार मनाता है !
जैसा कि सब जानते हैं कि महाभारत काल में कुंती पुत्र कण को दानवीर कहा चाहता था कर्ण केवल देवी कुंती के ही नहीं बल्कि सूर्यदेव के भी पुत्र थे सूर्यदेव की अपने पुत्र कर्ण पर खास कृपा थी और कण भी हर रोज प्रातः काल उठकर अपने पिता सूर्यदेव को अघर दिया करते थे तभी से एक त्यौहार के रूप में सूर्य अघर की परंपरा की शुरुआत हुई थी इसके साथ ही कुंती और द्रौपदी के व्रत को भी रखने का जिक्र ग्रंथों में मिलता है ऐसा कहा जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट कौरवों से जुए में हार गए!
तब द्रौपदी ने छट व्रत रखा जिसकी वजह से उन्हें सारा हारा हुआ राजपाट वापस मिल गया था देखिए वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो रावण वध के पाप से आजाद होने के लिए ऋषि मुनियों के कहने पर राज यज्ञ सूर्य करने का फैसला किया जिसके लिए मुदगल ऋषियों को मत्रित किया गया था लेकिन मुदगल ऋषि ने प्रभु राम और देवी सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया ऋषि के आदेश पर वो दोनों स्वयं ही आश्रम जा पहुंचे और उन्होंने छट की पूजा के बारे में ऋषिवर को बताया जिसके बाद मुद्गल ऋषि ने देवी सीता को गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पष्ट तिथि को सूर्यदेव की पूजा करने का आदेश दिया यहीं रहकर देवी सीता ने छ दिनों तक भगवान सूर्य की पूजा की थी!
और ऐसी मान्यता है कि माता ने जहां छह दिनों तक रुककर छट पूजा पूरी की वहां आज भी उनके पद चिन्ह मौजूद हैं बता दें कि वह जगह बिहार के मुंगेर में है कालांतर में रा क्षेत्र के लोगों ने मंदिर का निर्माण करवाया था यह मंदिर सीता चरण मंदिर के नाम से जाना जाता है यह मंदिर हर साल गंगा की वाल में डूबता है इसके साथ ही देवी सीता के पद चिन्हों वाला पत्थर भी गंगा के पानी में डूबा रहता है इतने साल गुजर जाने के बाद भी उनके पद चिन्ह आज तक धूमिल नहीं पड़े भक्तों की इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है और लोग दूर-दूर से छट पूजा के समय यहां मत्था टेकने आते हैं कहा जाता है यहां आने वाले भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है इसके अलावा कहा तो यह भी जाता है कि भगवान श्री राम सूर्यवंशी कुल के राजा थे और उनके आराध्य एवं कुल देवता भगवान सूर्य ही थे इसी वजह से रामराज्य की स्थापना से पहले प्रभु श्री राम ने देवी सीता के साथ कार्तिक शुक्ल पष्ट के दिन छठ का त्यौहार मनाते हुए सूर्यदेव की पूजा पूरे विधि विधान के साथ की थी !
जैसा कि आप सबने देखा है कि छठ पूजा के इस महा पर्व में बांस से बने सूप और दौरा की परंपरा काफी सालों से चली आ रही है जो हर वर्ग के लोगों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती है वहीं छट पूजा में सूर्यदेव की पूजा होती है इसलिए उनकी पूजा में पीतल के बर्तन का इस्तेमाल खास तौर से किया जाता है पीतल के बर्तन पूजा के लिए बहुत ही शुभ माने जाते हैं और छट पूजा में तो खासकर शुद्धता का ध्यान रखा जाता है यही वजह है कि छट पूजा में पीतल के बर्तन का इस्तेमाल किया जाता है कहते हैं छट पूजा में भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए पीतल के बर्तन को उपयोग में जाता है ऐसा करने से भक्तों की सारी मनोकामना पूरी हो जाती है और मान सम्मान बना रहता है ज्योतिष शास्त्र की माने तो पीपल के बर्तन का संबंध बृहस्पति ग्रह से है!
इसलिए अगर आपकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर है तो इसे मजबूत करने के लिए पीतल के बर्तन से ही छट पूजा के समय सूर्यदेव को अर्घ द ताकि इससे आपका लाभ हो इस पूजा में बांस की टोकरी सूप नारियल पानी पत्ते लगे करने अदरक का हरा पौधा अक्षत दीप सिंदूर धूप नए वस्त्र थाली लोटा कुमकुम मौसम के हिसाब से फल मिट्टी या पीतल का कलश पान और सुपारी की जरूरत पड़ती है अगर आपकी छठ पूजा में ये चीजें नहीं है तो वो पूरी नहीं मानी जाएगी वहीं बात अगर इसकी विधि की करें तो छठ पूजा के दिन सबसे पहले सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे फिर स्नान आदि करके भगवान सूर्य और छटी मैया को याद याद करते हुए व्रत का संकल्प ले याद रखें कि इस दिन व्रत रखने वाली महिला को कुछ भी अन्न नहीं ग्रहण करना है वैसे अगर हो सके तो निर्जला व्रत ही रखें !
वहीं छठ के पहले दिन सूर्यास्त से थोड़ा पहले छठ घाट पर पहुंचे और वहां स्नान करने के बाद ढलते हुए सूरज को पूरी निष्ठा के साथ अ घरे दें ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से सूर्यदेव आपकी इच्छा पूरी करते हैं वहीं सूर्य को अघर देने के लिए सूप का इस्तेमाल करें वैसे अगर आपके पास सूप नहीं है तो आप बांस या पीतल की टोकरी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं अधर देने के लिए आप फल फूल गन्ने या पकवान के साथ-साथ वो सारी पूजन सामग्री रखें जो हमने आपको पहले ही बताइए क्योंकि ऐसा करना बहुत जरूरी होता है और हां सूप या टोकरी पर सिंदूर लगाना बिल्कुल ना भूले इसके साथ ही निर्जला व्रत रखने के बाद अगले दिन सुबह उगते हुए सूर्य को जल अर्पित करें याद रखें !
सुबह सूर्य को अधर देते समय आपको अपनी इच्छा उन्हें मन ही मन बतानी है ताकि आपको उनका आशीर्वाद मिल सके इसके अलावा छट पूजा के पहले दिन को नाई खाए भी होता है जिसमें व्रत रखने वाली महिला गंगा स्नान के बाद कद्दू भात बनाकर उसे खाती है वैसे कुछ लोगों के यहां लौकी भी बनाई जाती है दरअसल इस दौरान व्रत रखने वाली महिलाओं को सात्विक और शुद्ध भोजन करने को कहा जाता है यानी कि ऐसा खाना जिसमें लहसुन प्याज या मिर्च मसाला ना हो छट पूजा के समय वृति के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी लोग खाना खाते हैं इसके दूसरे दिन खरना करने की मान्यता है जिसमें स्नान ध्यान करने के बाद महिलाएं चावल और गुड़ की खीर बनाकर खरना देवी को अर्पित करती हैं शाम की पूजा के बाद घर के सभी लोग पहले इस प्रसाद को खाते हैं और फिर ही भोजन करते हैं !
आपको बता दें खरना प्रसाद को बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है बता दें कि तीसरे दिन डूबते सूरज और चौथे दिन उगते सूरज को अधर देकर इस त्यौहार का समापन होता है मान्यताओं के अनुसार छठ पर्व के दौरान छटी मैया को प्रसन्न करने के लिए जो महिलाएं इन कठिन नियमों का अच्छे से पालन करती हैं उसे छटी मैया का आशीर्वाद जरूर मिलता है जिसके चल उसे अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान मिलता ही है साथ ही संतान की लंबी उम्र का भी वरदान प्राप्त होता है तो दोस्तों आज की Post में फिलहाल बस इतना ही आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं साथ ही Article को लाइक और शेयर जरूर करें