वट सावित्री व्रत और पूजा गुरुवार को है। विवाहित महिलाएं इसका पालन करती हैं। उत्तर भारत में इस व्रत का बहुत महत्व है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। इस व्रत में आम, लीची, केला, पान, सुपारी फल को विशेष महत्व दिया गया है। इसके साथ ही घी में आटे से बनी बरगद के पत्ते की आकृति वाली डिश प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है।
वट सावित्री में सिर्फ ये फल ही क्यों
वट सावित्री की पूजा में आम, अंगूर, तरबूज, खीरा, अनानास, संतरा, लीची आदि सबसे अच्छे प्रसाद हैं। पंडित दिलीप ठाकुर कहते हैं कि यह व्रत गर्मियों में रखा जाता है और इसमें रस से भरे सभी फलों को प्रसाद की टहनी में चढ़ाना चाहिए। यह एक मान्यता है और शास्त्रों में भी कहा गया है।
केवल विवाहित महिलाओं का व्रत
पंडित बताते हैं कि यह पूजा न तो कुंवारी कन्याएं करती हैं, न विधवाएं और न ही पुरुष। केवल और केवल सतीत्व वाली महिलाएं ही यह व्रत रखती हैं। विवाहित महिलाएं पूजा करने के बाद ही पानी पीती हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा करना यमराज की पूजा करने के समान है।
मनुष्य के देवता की पूजा
पंडित बताते हैं कि विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए यमराज देव को प्रसन्न करती हैं। वे चाहती हैं कि यमराज देव उनके सुहाग की रक्षा करें। विवाहित महिलाएं सुबह स्नान करके नए कपड़े पहनती हैं और इस व्रत की शुरुआत करती हैं।
पूजा-कथा की प्रक्रिया
पंडित अंत में यह भी बताते हैं कि वैसे तो इस व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। लेकिन जो महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे नहीं जा सकती हैं या ये पेड़ उनके आस-पास नहीं हैं, वे घर पर पेड़ की तस्वीर की भी पूजा कर सकती हैं। चंदन-कुमकुम-अक्षत से पेड़ की पूजा करने के बाद उस पर धागा बांधें। फल-फूल चढ़ाएं और फिर विधि-विधान से कथा सुनाएं।