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मुश्किल में चिराग पासवान, क्या हाजीपुर से चुनाव जीतकर तोड़ पाएंगे अपने पिता राम विलास पासवान का रिकॉर्ड?

मुश्किल में चिराग पासवान, क्या हाजीपुर से चुनाव जीतकर तोड़ पाएंगे अपने पिता राम विलास पासवान का रिकॉर्ड?

धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व रखने वाली हाजीपुर सीट पर सबकी निगाहें हैं. 1977 के चुनाव में राम विलास पासवान ने यहां से रिकॉर्ड जीत हासिल की थी. वह यहां से आठ बार सांसद भी रहे. इस बार उनके बेटे चिराग पासवान की राजनीतिक परीक्षा जमुई की जगह हाजीपुर में होगी. अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए संघर्ष कर रहे चिराग का मुकाबला राजद नेता और राज्य सरकार के पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम से है। यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता दोनों में से किसे अपना प्रतिनिधित्व करने का मौका देगी.

हाजीपुर. उत्तर बिहार की राजनीति का केंद्र हाजीपुर (सुरक्षित) सीट के इतिहास पर नजर डालें तो यहां से दिग्गज समाजवादी चुनाव जीतते रहे हैं. इस चुनाव में अपने पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने की जिम्मेदारी चिराग पासवान के कंधों पर है.

इस बार पशुपति कुमार पारस चुनाव मैदान से बाहर: 2019 के चुनाव में राम विलास पासवान ने हाजीपुर सीट अपने भाई पशुपति कुमार पारस के लिए छोड़ दी थी. इसे वक्त की नजाकत कहें या कुछ और, वक्त और हालात ऐसे बदले कि इस चुनाव में पशुपति कुमार पारस चुनावी मैदान से बाहर हैं और खुद राम विलास पासवान के बेटे और एलजेपी (आर) सुप्रीमो चिराग पासवान यहां से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. यह सीट. इससे पहले वह जमुई से सांसद थे. अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए संघर्ष कर रहे चिराग का मुकाबला राजद नेता और राज्य सरकार के पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम से है। यह तय है कि अगर इनमें से कोई भी जीतता है तो पहली बार इस क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व करेगा.

गोलबंदी में जुटे तेजस्वी: हाजीपुर लोकसभा का राघोपुर विधानसभा है, जहां के विधायक खुद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव हैं. जमुई सीट छोड़कर हाजीपुर से चुनाव लड़ रहे एलजेपी (आर) सुप्रीमो चिराग पासवान के खिलाफ तेजस्वी दिन-रात लोगों को गोलबंद करने में लगे हुए हैं. यह सीट दोनों नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई है. इस इलाके में यादव और पासवान की आबादी सबसे ज्यादा है. कुशवाह, रविदास, राजपूत, भूमिहार निर्णायक साबित होते हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, क्षेत्र में कौन किसे वोट देगा, इसकी चर्चा तेज हो गयी है.

नोटा दबाने वालों की बढ़ रही संख्या: यहां नोटा दबाने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2014 के चुनाव में 15 हजार 47 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था, जबकि 2019 के चुनाव में 25 हजार 256 लोगों ने नोटा का बटन दबाया. नोटा को मिले वोट कई उम्मीदवारों से ज्यादा थे.

धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का शहर: गंगा और गंडक नदी के तट पर स्थित हाजीपुर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। पुराणों के अनुसार यहां गज (हाथी) और ग्राह (मगरमच्छ) के बीच युद्ध हुआ था। तब भगवान विष्णु ने स्वयं आकर गज की रक्षा की और ग्राह को श्राप से मुक्त किया। इन दोनों की लड़ाई में ‘कौन हारा’ की चर्चा पर बना कौनहारा घाट आज भी खड़ा है। हाजीपुर का केला और आम पूरे देश में मशहूर है. यहां सब्जियों का भी खूब उत्पादन होता है. चमचमाती सड़कें इलाके में हुए विकास की कहानी बयां करती हैं. लोग कहते हैं कि हाजीपुर बदल रहा है.

चार लाख वोटों से जीत का बनाया रिकॉर्ड: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास ने 1957 में पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ा था. तब उनकी उम्र महज 36 साल थी. हालांकि उन्हें कांग्रेस के राजेश्वर पटेल से हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1991 और 2009 में रामसुंदर दास यहां से सांसद बने. 1977 से 2019 तक इस सीट पर राम विलास पासवान का दबदबा रहा। वह केवल दो बार चुनाव हारे, 1984 में कांग्रेस के रामरतन राम और 2009 में जेडीयू के रामसुंदर दास से। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में राम विलास पासवान को रिकॉर्ड 89.3 प्रतिशत वोट मिले। .

राजद: शिवचंद्र राम

इंडिया अलायंस के उम्मीदवार शिवचंद्र राम इस बार हाजीपुर से दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 में चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस ने उन्हें दो लाख पांच हजार वोटों से हरा दिया. शिवचंद्र पहले राजापाकड़ और महुआ से विधायक रह चुके हैं. 2015 में वह बिहार की ग्रैंड अलायंस सरकार में कला और खेल मंत्री थे। 2020 के विश्वास ने पातेपुर से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। वह युवा राजद के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 51 साल के शिवचंद्र ने ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की है.

एलजेपी (आर): चिराग पासवान

जमुई लोकसभा सीट से दो बार चुनाव जीत चुके चिराग पासवान पहली बार हाजीपुर (उत्तर प्रदेश) सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. वह पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के बेटे और एलजेपी (आर) के अध्यक्ष हैं। चाचा पशुपति कुमार पारस से विवाद के बाद उन्होंने अपनी पार्टी बनाकर अपनी ताकत दिखाई. 42 साल के चिराग ने फिल्मों में भी करियर बनाने की कोशिश की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 13 मई को हाजीपुर में चिराग के पक्ष में सभा कर चुके हैं.

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