कहानी शुरू होती है उस वक्त के बिहार से जब बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद एक ऐसा राज कायम हो रहा था जिसमें अपराध सबसे बड़ा व्यवसाय था अपहरण फिरौती रंगदारी और सुपारी किलिंग एक इंडस्ट्री की तरह बिहार में अपने पैर पसार रही थी और बिहार के कुछ जमे जमाए इंडस्ट्रीज वहां से बेदखल होने को मजबूर हो रहे थे !
दबे कुच लों की आवाज देने के नाम पर लाठी डंडा थमाया जा रहा था उनके बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय इस नई इंडस्ट्री का एक्सपर्ट बनाया जा रहा था और प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों की दैनी और रहे हालात की वजह से शिक्षा पाने की लालसा रखने वाले पलायन कर रहे थे आज के वक्त में अचानक आपको मोबाइल फोन से दूर कर दिया जाए तो कैसा महसूस करेंगे!
आप आपके बच्चे जैसा महसूस करेंगे कुछ वैसा ही पाबंदियां अचानक बिहार पर ला दी गई थी और उसका कारण था अचानक समाज में हुए बदलाव में अपराध का बोलबाला यहां से शुरू होती है जंगल राज की कहानी बिहार में जंगल राज का दौर तो बिहार के लोगों को अच्छे से याद है लेकिन बिहार के लिए जंगलराज शब्द का पहली बार इस्तेमाल कैसे हुआ यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं दरअसल तारीख थी 5 अगस्त 1997 एक याचिका पर सुनवाई के दौरान पटना हाई कोर्ट ने बिहार को पहली बार जंगल राज कहा हाई कोर्ट ने कहा बिहार में सरकार नहीं है!
बिहार में जंगल राज कायम हो गया है लालू और राबड़ी के शासन में अपराध के साथ-साथ घोटाले भी चरम पर थे लालू यादव का चारा घोटाला भी जंगल राज के आरोपों पर मोहर लगा रहा था पशुओं के चारे के नाम पर बिहार में कई जिलों में रुपयों की हेरी फेरी हुई लंबी कानूनी लड़ाई चली और अंततः लालू को चारा घोटाला में सजा मिली फिलहाल लालू यादव चारा घोटाला में सजा काट रहे हैं जब बिहार में चारा घोटाला हो रहा था उस वक्त राबड़ी देवी के भाई साधू यादव और सुभाष यादव का नाम भी सुर्खियों में आने लगा था!
लालू के दोनों सालों का दबदबा ऐसा था कि लालू की बेटियों की शादी होती थी तो गाड़ियों के शोरूम में खड़ी नई गाड़ियां उठा ली जाती थी उद्योगपति व्यापारी चाहकर भी कुछ नहीं बोल पाते थे बिहार में साधू यादव और सुभाष यादव के नाम से कॉर्पोरेट कंपनियां और उद्योग तक डरते थे साधू यादव का नाम शिल्पी जैन हत्याकांड में भी उछला था 1999 में विधायक रहते साधू यादव के सरकारी क्वार्टर से शिल्पी जैन और गौतम सिंह का शब मिला था इस केस में जब सीबीआई ने साधू यादव से डीएनए टेस्ट कराने को कहा था !
उन्होंने इंकार कर दिया था वर्ष 2003 में फिल्म निर्देशक प्रकाश झा ने बिहार की राजनीति और अपराध को लेकर फिल्म गंगाजल बनाई थी इस फिल्म में खलनायक किरदार का नाम साधू यादव रखा था साधू यादव के समर्थकों ने फिल्म में विलन का नाम साधू यादव रखने को लेकर आपत्ति जताई थी लेकिन कोर्ट ने उनकी आप पति को खारिज कर दिया था दीदी और जीजा के शासनकाल में साधू यादव का दबदबा था उनकी पहचान बिहार में बाहुबली के रूप में होने लगी बिहार में जंगलराज के उस दौर ने बिहार की छवि और तरक्की दोनों को काफी नुकसान पहुंचाया!
नीतीश कुमार के 15 साल के सुशासन में बिहार उस बुरे दौर से बाहर निकलने में कामयाब रहा आपको बताते हैं कि कैसे लालू यादव का परिवार के शासन काल में जंगल राज था जो नीतीश कुमार के सुशासन में कम हो गया पहला नक्स हमलो में कमी आई दूसरा खूनी जाति संघर्ष की वारदातों में गिरावट आई तीसरा बूथ कैपचरिंग की घटनाएं बंद हुई चौथा अपहरण फिरौती की घटनाओं में कमी आई दरअसल यह वह कहानी थी जो बिहार में जंगल राज को बया करती है इस पर डिटेल वीडियो हम लेकर आएंगे लेकिन हमने सोचा शॉर्ट में इसकी जानकारी आप तक पहुंचाई जाए आपको शॉर्ट में इस पूरी कहानी को बताई जाए!
इस तरीके से जंगलराज ने बिहार को कई साल पीछे धकेल दिया आज जो बिहार के हालात हैं आज जो बिहार झेल रहा है पलायन की इतनी बड़ी स्थिति फेस कर रहा है इसका सिर्फ एक ही कारण है उस वक्त का
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