बीजेपी इस कमी को दूर करने की कोशिश में है. एक तरफ यूपी में समाज के कुछ नेताओं को आगे बढ़ाया जा सकता है, वहीं बिहार में भी मंथन का दौर चल रहा है. उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजा जा सकता है.
उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से मायने रखते हैं. लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव नतीजों पर नजर डालें तो संविधान बदलने, आरक्षण पर संकट जैसी चर्चाओं ने विपक्ष को मजबूत किया, वहीं बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. इसके अलावा जातिगत समीकरण बदले तो नतीजे भी बदले हैं. खासकर उत्तर प्रदेश में अवध और पूर्वांचल के इलाकों में समाजवादी पार्टी की जीत के पीछे की वजह गैर यादव ओबीसी नेताओं को बड़े पैमाने पर टिकट दिया जाना है. इनमें अखिलेश यादव ने कुर्मी, कोरी, कुशवाहा समाज के नेताओं को टिकट देकर फायदा उठाया और यहीं बीजेपी चूक गई.
बिहार में खाली हो रही हैं राज्यसभा की दो सीटें
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बिहार में राज्यसभा की दो सीटें खाली हैं और उनमें से एक उपेंद्र कुशवाहा को दी जाएगी। वहीं पार्टी ने डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष का पद सम्राट चौधरी को दिया है, जो कुशवाहा समाज से ताल्लुक रखते हैं। राज्य में कुशवाहा समाज की आबादी 4.2 फीसदी है। दिलचस्प बात यह है कि इस वर्ग पर आरजेडी की भी नजर है, जो अब तक यादव और मुस्लिम समीकरण पर ज्यादा फोकस करती थी।
उसने पहली बार सांसद बने अभय कुशवाहा को लोकसभा में अपना नेता चुना है। पिछले 20 सालों से लव-कुश समीकरण नीतीश कुमार का आधार रहा है, लेकिन आरजेडी ने इस बार इसमें सेंध लगा दी है। ऐसे में नीतीश और बीजेपी दोनों इस पर काम कर रहे हैं। बिहार में आरजेडी और यूपी में एसपी को लगता है कि इस वोट में सेंध लगाकर बीजेपी और जेडीयू को नुकसान पहुंचाया जा सकता है। बिहार में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन ने कुशवाहा समुदाय से 7 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 2 जीते। इसके अलावा 5 ने एनडीए की जीत के अंतर को काफी कम कर दिया। 2019 के मुकाबले यह बड़ा उलटफेर था। इसके अलावा आरजेडी को लगता है कि अब वह जेडीयू के रिजर्व वोट में भी सेंध लगा सकती है।