मैं सच्ची कहानियां सुनाना पसंद करता हूं झूठ बोलने से बचता हूं मैं आपको तीन चार छोटी छोटी कहानियां सुना रहा हूं यह सारी कहानिया सच्ची है एक एक प्रतिशत सच्ची है पर मैं किसी का नाम नहीं लूंगा जिनकी कहानी उनका नाम नहीं लूंगा उनकी प्राइवेसी का मामला है पर हां सच्ची कहानी है अच्छी बात है कि इन कहानियों के किरदार हम लोग नहीं बने ईश्वर करे हम कभी ना बने लेकिन कहानिया सच्ची है जब मैं दिल्ली आया था 90 में मैं हरियाणा के शहर से भिवानी से दिल्ली आया था पढ़ने के लिए मेरे ड्रीम कॉलेज में हंसराज भी एक था पर मेरा संयुक्त से मेरा एडमिशन जाकिर हुसैन में हुआ मेरे अंक ठीक थे यहां हो सकता था !
पर मैं तो नई दिल्ली स्टेशन पर उतरा बाहर निकला पता लगा वहीं एक कॉलेज है वही एडमिशन ले लिया मैंने तो लोगों ने कहा कि र कैंपस बड़ा अच्छा होता है मैंने क्या फर्क पड़ता है कॉलेज कॉलेज होता है छो यही छो में सिखाने आया हूं आप लोगों को ठीक है स्टेशन से निकले वही कॉलेज है मैंने घर जाना होगा तो आराम से कॉलेज से निकल जाएंगे क्या रखा कैंपस में पर मेरा एक दोस्त जो मेरे साथ ही आया था उसी शहर से उसने एडमिशन हंसराज कॉलेज में लिया मैं और वह स्कूल के डिबेटर थे डिबेटिंग में हम लोग स्कूल टाइम से काफी एक्टिव थे डीयू में तो यहां भी एक्टिव रहे डीयू में मैंने करीब पा साल डिबेटिंग की मेरा ख्याल है !
कि लगभग मतलब तीन चार 400 डिबेट मैंने जीती होंगी डीयू में कुछ हरी भी होंगे लेकिन मैंने खूब डिबेट वो मेरा दरअसल दाना पानी था रोजी रोटी मेरी वही थी कॉलेज के दिनों में घर से पैसे में लेता नहीं था मिलते भी नहीं थे देना क्या था म ऐसी स्थिति भी नहीं थी उस समय मेरे घर में की मिल सके तो डिबेटिंग मेरा रोजगार था एंप्लॉयमेंट था मेरा उससे काम चल जाता था आराम से उसका भी चल जाता था व हंसराज से था मैं जाकर हुसैन से था हम खूब डिबेट से मिलते थे!
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अक्सर ट्रॉफी या तो हम जीते थे या वो जीतता था कोई भी रूम पर ही आती थी क्योंकि हम रूम मेट थे एक साथी रहते थे वो मुझसे योग्यताओं के मामले में 21 था बल्कि अगर व 21 था तो मैं 15 ही रहा हगा या 12 रहा हूंगा 22 या 21 तो नहीं रहागा बसे बेहतर था योग्यताओं में बड़ा अच्छा व्यक्ति था ग्रेजुएशन के बाद मैंने एमए हिंदी साहित्य में एडमिशन लिया जबकि बीए ऑनर्स एसटी में किया था मैंने उसने तय किया कि वो कुछ और करेगा प्रोफेशनल कोर्स करेगा नौकरी करेगा तो वो चला गया दिल्ली से मैं दिल्ली में रहा फिर मैं एमए के बाद तैयारी करने लगा यूपीएससी की तब तक मैं यूजीसी जेआरएफ कर चुका था !
पहला अटेंप्ट दिया प्रीलिम्स हो गया मेंस मेरा 96 के मेंस की बात कर रहा हूं मेंस शुरू होने वाला था दो दिन रह गए थे करीब 10 दिन पहले वो मेरे पास आया हुआ था दिल्ली में मिलजुल के अच्छे से बात करके गया था उन दिनों उसका एक प्रेम संबंध कहीं हमारे ही एक मित्र के साथ चल रहा था हम सब दोस्त थे तो उनमें से दो लोगों का आपस में अफेयर था मुझे नहीं पता क्या हुआ लेकिन मेरे मेन एग्जाम से दो दिन पहले रात को 12 बजे एक फोन आया और यह बताया गया कि मेरे दोस्त ने फंदा लगाकर अपनी जीवन ला समाप्त कर ली है व दिल्ली से दूर था !
कहीं और जिस व्यक्ति के बारे में मेरी राय यह थी कि उतना जीवट वाला कोई हो नहीं सकता जो जिंदगी से हार सकता ही नहीं जिसके होने से कई लोग हमेशा जीता हुआ महसूस करते हैं वह चुपचाप एक बंद कमरे में जिंदगी से हर गया मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ऐसा कैसे हुआ बाद में टटोला उसके पेरेंट से बात हुई भाई से बात हुई उन्होंने उसकी याद में एक सोशल वर्क शुरू किया ताकि किसी और बच्चे को ऐसा ना करना पड़े तो जो हल्का हल्का अनुमान हुआ वो कि शायद कुछ ऐसा था रिलेशनशिप में जो नहीं संभल पाया था और रिश्ता टूट ना जाए इसका दबाव बहुत ज्यादा था और व दबाव झेल नहीं पाया इस उम्र में ऐसा ऐसा फेज आता है !
कई बार आता है यह कहानी है हंसराज कॉलेज से ही जुड़ी है इसलिए मैंने सोचा कि वही से बात शुरू करू नाम जैसा कि मैंने कहा मैं नहीं बताऊंगा तो नाम बताने का मतलब भी नहीं और वो जिसकी मैं कहानी सुना रहा हूं आप लोग के जन्म से पहले की बात है आप तो सब 21 सदी वाले बच्चे होंगे ना जनही होंगे आप सब लोग तो तो यह तो बहुत पुरानी बात है एक दूसरी कहानी सुनाता हूं मैं आपको दो तीन कहानिया सुनाऊंगा !
फिर उन सबका सार निकाल लेंगे साथ हम दूसरी कहानी यह है कि जब मेरा सिलेक्शन हो गया 97 में मतलब 96 अटम में पहली बार में मेरा सिलेक्शन हो गया था मैं एक्सटेंशन लेकर तैयारी रहा था और डीयू में मैं पढ़ा भी रहा था उस समय तब मैं शायद डीएवी कॉलेज में था या अग्रेस मैंने दो जगह पढ़ाया डीयू में तो उनमें से किसी कॉलेज में पढ़ा रहा था उस समय में तो उस समय एक लाइब्रेरी है कैंपस में सेंट्रल रेफरेंस लाइब्रेरी आप जानते होंगे सीआरएल बोलते हैं जो विवेकानंद जी की स्टैचू सामने ही वो लाइब्रेरी है उस लाइब्रेरी में नीचे सब बैठ के पढ़ते हैं और टॉप फ्लोर प रिसर्च फ्लोर है जहां एमफिल पीएचडी वाले बच्चे पढ़ते हैं मैं उस समय शद पीएचडी कर रहा था य एमफी खत्म हुई थी वही बैठता था पढ़ता था !
रोज कई दोस्त पढ़ते थे हम लोग वहां हम सुबह 8:00 बजे लाइब्रेरी खुलते ही व घुसते थे रात को एक बजे निकलते थे लाइब्रेरी बंद होने के समय तो वहां एक छत थी छत पर छोटी सी कैंटीन थी जहां हम लोग जब जब बोर होते थे दिन में तीन चार बार जाकर चाय पीते थे चाय पी ली बिस्किट खा लिया थोड़ी गप्पे मार ली व सब बहा करते थे तो मेरे बहुत सारे दोस्त थे उनमें से कई लोग अब बहुत सीनियर सिविल सर्वेंट्स हैं कुछ लोग प्रोफेसर्स है डीयू में दो बच्चे थे मुझसे जूनियर तीन चार साल जूनियर थे बड़े प्यारे बच्चे थे मुझे उस समय तक पढ़ाई लिखाई का शौक अच्छा खासा हो गया था तो वह रोज मेरे साथ बैठते थे!
केवल बात करने के लिए किसी मुद्दे पर बहस करनी है तो बहस होती थी समझते से फिर मुझे पता लगा कि वो रिलेशनशिप में है रिश्ते में है दोनों ने शादी भी कर ली उनकी योजना डीयू में पढ़ाने की थी या सिविल सर्विस की भी थी शायद पता नहीं मेरा इंटरेक्शन बहुत ज्यादा उसके बाद रहा नहीं उनसे क्योंकि मैं सर्विस में चला गया था इतने जिज्ञासु बच्चे से दोनों इतने जिज्ञासु कि उनसे मिलकर तबीयत खुश हो जाती थ हर चीज जानने का मन करता था उनका हर विषय पढ़ने का मन करता था एकदम जीवन से भरे हुए बच्चे आंखों में चमक ऐसे फिर दोनों की शादी हुई तो मैं शादी में जा नहीं पाया क्योंकि मेरा रिश्ता सिर्फ लाइब्रेरी में एक घंटा गप मारने वाला था !
उससे ज्यादा था नहीं रिश्ता उनके साथ फिर सुनता रहता था कि मैं सब बढ़िया चल रहे पढ़ाई कर रहे हैं तैयारी कर रहे हैं इंटरकास्ट मैरिज की उन लोगों ने खूब हंगामा हुआ दोनों घर में तलवारें खींच गई किसी तरह से तलवारें संभाली गई मैनेज हुआ दोनों साथ रहने लगे और फिर तीन चार साल के बाद एक दिन मैंने खबर सुनी कि उस बच्ची ने फंदा लगा के जीवन लीला समाप्त कर ली यह बात भी दिल्ली विश्वविद्यालय की उस दौर के सब लोग इस कहानी को जानते हैं मेरे ख्याल से दोनों कहानी आपके प्रिंसिपल मैडम जानती होंगी !
नहीं ध्यान कर पा रही हो तो मैं उनको जैसे ही नाम बोलूंगा अकेले में वो तुरंत समझ जाएंगे मैं किसकी बात कर रहा हूं मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ऐसा क्या हुआ होगा तो बाद में अनुमान जो हुआ वो यह इंटरकास्ट मैरिज परिवार का दबाव समाज का दबाव आपस के दबाव टॉक्सिक रिलेशनशिप अंत में उस दबाव को न झेल पाना और जीवन समाप्त कर देना यह हुआ यह दो घटनाए हैं एक तीसरी घटना यह है कि दिल्ली में आज से 25 साल पहले घटना घटी आप लोग तोत बस पैदा हुए होंगे घुटनों में चल रहे होंगे !
उससे पा सा साल पहले की बात रही होगी यह घटना दिल्ली के सब सीनियर लोग जानते हैं जिनकी उम्र 35 40 साल है व सब जानते हैं घटना को मोबाइल फोन में वीडियो नया नया आया था उस समय अब तो आपके हर फोन में वीडियो है अब तो सामने भी है ताकि आप वैसा वाला मुह बना के सेल्फी सके पाउट बोलते हैं ना मैं उसको देसी भाषा में सूर जैसा मुंह बोलता हूं और वैसा ही बनता भी है क्यूट क्यूट सा सवर जैसा मुंह बना के लोग सेल्फी खिच वाते हैं उससे बोलते पाउट तब तो कैमरा फोन में पहली बार आया था !
तब लोग अभ्यस्त नहीं थे अब जैसे आप लोग कितने अभ्यस्त होंगे हम भी होने लग गए अब तो अब हम किसी से बात करते हैं तो हम ये एज्यूम करके चलते हैं कि उसने फोन में कुछ ना कुछ ऑन कर रखा होगा या तो आवाज रिकॉर्ड करेगा या वीडियो बनाएगा तुम कितने केयरफुल हो के बोलते हैं कितने कॉन्शियस रहते हैं और सर्विलांस सोसाइटी की सबसे बुरी बात यह है कि हम हमेशा चौकन रहते हैं हम सहज हो ही नहीं पाते सहज रूप से दो लोग बात कर ले हो ही नहीं पाता तो मैं तो अपने ऑफिस में कई बार ऐसा करता हूं!
जब हम तीन चार लोग बैठते हैं इनफॉर्मल बातचीत के लिए हम सब अपना अपना फोन कमरे के बाहर छोड़ के आ जाते हैं फिर दो घंटे बात करते हैं इस भय से मुक्त होकर कि कहीं कोई और तो नहीं कर रहा ये हालत है आज की उस जमाने में तो फोन थे मोबाइल फोन आया था भारत में लगभग 1995 के आसपास पहली बार बड़ा महंगा था ₹1 प्रति मिनट इनकमिंग ₹1 प्रति मिनट आउट गोइंग ये रेट से उस समय और फोन वो थे जिनसे आप कील भी ठोक सकते हैं वैसे वाले फोन थे बटन वाले फोन थे पहली बार किसी कंपनी ने फोन में कैमरा लगा दिया !
यह बात उस समय के लोग नहीं समझते थे जब भी नई तकनीक आती है उसको समझने में टाइम लगता है जो पहले समझते हैं फायदा उठा लेते हैं जो थोड़ा लेट समझते हैं वह उसका नुकसान उठाते हैं उस समय दिल्ली के एक प्रसिद्ध स्कूल में 11वी 12वीं क्लास के दो बच्चों में आपस में कोई रिलेशनशिप रही होगी वो दोनों किसी ऐसी सिचुएशन में थे जो सिचुएशन बहुत ही प्राइवेट किस्म की थी बहुत निजी किस्म की थी जिसको पब्लिक नहीं कर सकते कुछ कुछ फिजिकल रिलेशनशिप जैसा मामला था उस दुष्ट लड़के ने लड़कों के इतिहास को कलंकित लड़को का इतिहास वैसे भी कलंकित ज्यादा है उसे और कलंकित करते हुए उस पूरे सिचुएशन का वीडियो बना लिया ऐसे मामलों में दुर्भाग्य है!
मैं लड़का हूं इसलिए लड़के पवित्र थोड़ ना हो जाएंगे है इतिहास कलंकित तो है उसका वीडियो बना लिया और दुष्टता का चरम स्तर निभाते हुए वह वीडियो अपने दोस्त को शेयर कर दिया यह कह के किसी और को दिखाना मत जैसा कि होता है अओ की दुनिया में हर अफवा एक व्यक्ति एक को ही बताता है यह कह के किसी और को मत बताना और अगला व्यक्ति भी अगले को यही कह के बोलता किसी और को मत बताना और इस तरह से पूरे शहर को खबर होती है और सबको लगता है कि सिर्फ मुझे पता है वो वीडियो ये फैल गया नए-नए फोन आए थे!
वो फोन कम लोगों के पास थे कैमरे वाले फोन तो फोन से कितना फैलता ज्यादा नहीं फैला लेकिन उस समय दिल्ली की कुख्यात मार्केट हुआ करती थी पालिका बाजार अभी भी है पर तब वो कुछ और कामों के लिए कुख्यात हुआ करते थी अब तो कपड़े मिलते हैं तब कपड़ों के साथ कई चीज और मिलती थी वहां जैसे गंदी फिल्मों की सीढ़ी चाहिए हो! तो वहां मिलती थी ग्रे मार्केट में चोरी छिपे इस वीडियो को सीडी में कन्वर्ट करके लोगों ने वहां से खरीदा लाखों करोड़ों की संख्या में नए-नए टेलीविजन चैनल प्राइवेट आए थे और प्राइवेट टीवी चैनल को खबरों की भूख इतनी होती है! कि वह खबर के लिए जान दे सकता है और जान ले भी सकता है किसी की 2400 घंटे इस खबर पर इस चीज पर खबरें चल रही थी सारे चैनल्स में कि यह वो लड़का है जिसने ऐसा किया यह वो लड़की है यह वो स्कूल है स्कूल की प्रिंसिपल से बात करेंगे इससे बात करेंगे व जो बच्ची थी जिसकी इसमें कोई गलती नहीं थी!
सिवाय इसके कि वह किसी एक लड़के से प्रेम करती थी जो कि उस उम्र में बच्चे कर बैठते हैं इसके लिए बहुत चिल्प बचानी चाहिए बच्चों को आप हर बात पर अपराधी नहीं मान सकते उस बच्चे की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने अपने दोस्त पर भरोसा किया जो भरोसे के लायक था नहीं व नीच किस्म का व्यक्ति था जिसने उस संबंध की गरिमा को समझा नहीं उस बच्ची के घर के बाहर 2400 घंटे न्यूज चैनल से कैमरे खड़े रहे घर से कोई भी निकले 50 कैमरे पीछे आप बताइए आपकी बेटी कैसी आप बताइए आपकी बहन कैसी है अंत में उस पिता ने अपनी बच्ची को इस देश से बाहर भेज दिया!
उसके कुछ दिन बाद की जो खबर टीवी चैनल से नहीं दिखाई उसके पिता ने आत्महत्या कर ली यह तीसरा इंसीडेंस है यह सारी खबरें सच्ची बता रहा हूं मैं इनम से एक भी झूठ नहीं है झूठी कहानियों से मोटिवेशन दिया जा सकता है मैं जानता हूं पर जब सच्ची कहानियां है तो मैं झूठ क्यों बोलू सारी सच्ची कहानियां बता रहा हूं मैं आपको एक चौथी कहानी जो आप में से कई लोगों की होगी मेरा एक स्टूडेंट है सिविल सर्वेंट है सीनियर लेवल पे है करीब 40 साल का है उसने आज तक शादी नहीं की क्या उसकी शादी करने की इच्छा नहीं थी पूरी इच्छा थी फिर क्यों शादी नहीं की भाई कुछ लोग तो होते कि शादी करनी ही नहीं कोई मिशन है योगी जी है मोदी जी है ठीक है उनका तो मिशन है!
ममता जी है उनका मिशन है पर जिसका जीवन में ऐसा कोई मिशन नहीं है और जिसको प्रेम करने का मन भी करता हो वह तो शादी करता है आमतौर पर उसने शादी क्यों नहीं की जानते जब 25 26 की उम्र उ में था जब वो मेरा विद्यार्थी भी था एक दिन मेरे पास आ ग बोले कि सर एक बात करना चाहता हूं मुझसे मेरे स्टूडेंट्स ऐसी बातें खूब करते हैं पर्सनली आ के अब तो मैं टाइम कम दे पाता हूं पहले तो य सब होता रहता था क्लास के अलावा एकदम रोता हुआ आया आंखों में आंसू भरे हुए बहुत सारे अरे क्या हो गया भाई तो फिर उसने किसी का नाम बताया कि सर वो वही मेरी स्टूडेंट थी!
कि सर उसे स रिलेशनशिप थी उसने धोखा दिया है मुझे अच्छा धोखा देने वाली कहानिया मुझे बहुत अपील नहीं करती मेरा मानना है कि दोनों पक्षों की गलतियां होती हैं आप केवल अपने पर्सपेक्टिव से सोच सोच के धोखा धोखा करते रहते हैं ऐसा थोड़ ना होता है भाई कुछ तो मजबूरियां रही होंगी कोई यूं ही बेवफा नहीं होता कुछ तो वजह होगी ना आप थोड़ा उसकी वजह उसका भी तो उसकी कहानी भी तो सुनी है और मैं जब जब दोनों कहानियां सुनता हूं !
मुझे लगता है कि मामला ग्रेह है आप किसी एक उठ नहीं सकते इसने ऐसा किया दोनों की गलतिया होती है ऐसा थो कि एक की होती है बहरहाल इन भाई साहब को ऐसा लगा कि धोखा हो गया उनके साथ तो मैंने चलो कोई बात नहीं यार हो गया तो हो गया तू नहीं कोई और सही ऐसा क्या है इतनी बड़ी दुनिया है आ अरब की आबादी है उस समय भी छ सात अरब तो थी मैंने कहा साढ़े अरब 350 करोड़ में कोई तो होगी तुम्हारे लिए ऐसा क्या है कोई और देखेंगे पर वो थोड़ा ज्यादा सेंटीमेंटल था उस समय धीरे-धीरे पता नहीं उसके मन में क्या बैठ गया उसके मन में यह बैठा कि दुनिया की सारी लड़कियां धोखेबाज होती है ऐसे मूर्खों की कमी नहीं है दुनिया में ऐसे बहुत मूर्ख है दर्शन की दुनिया में इसे अवैध सामान्य करण कहते हैं !
इलिसिट जनरलाइजेशन इसका मतलब बहुत छोटे सैंपल के बेस प यह समझ लेना कि ये थरी पूरे ब्रह्मांड पर लागू होती है एक लड़की ने धोखा दिया मान लीजिए दिया धोखा इसने दिया कि उसने दिया कि किसीने दिया जो भी कहानी हो एक सैंपल से यह मान लेना कि सब ऐसे होते हैं और उसके बाद से उसने कम से कम 10 बार कोशिश की 10 लोगों से मिला बातचीत की शादी के लिए डेटिंग तो क्या करेगा 40 की उम्र में लेकिन हां बातचीत करके देखा कि शायद रुचिया मिल जाए स्वभाव मिल जाए तो शादी के बारे में सोचे हर बार तीन चार पांच मीटिंग के बाद वापस जाता है अब तो मैंने पूछना बंद कर दिया है जब तक मैं पूछता था बोलता था कि सर तीन चार मीटिंग के बाद लगता कि यह भी वैसे ही है मैंने कहा भूल जाओ भाई उसे भूल जाओ बात खत्म हो गई उसके बच्चे घूम रहे हैं !
आजकल स्कूल में अब तुम कम से कम शादी तो कर लो वो भाई साहब आज तक अकेले हैं और अब तो बाजार में मूल्य भी कम हो गया उनका अब विकल्प ज्यादा नहीं मिलते हैं अब जो विकल्प मिल रहे हैं वहां उसकी रुचि और कम हो गई है तो पूरी संभावना है कि वह जीवन अकेले ही गुजरेगा उसका एक अंतिम एग्जांपल देकर फिर मैं निष्कर्ष की तरफ बढूंगा मैं एक आईएएस ऑफिसर को जानता हूं दो आईपीएस को जानता हूं बहुत योग्य लोग देश के सबसे अच्छे संस्थाओं से पढ़े हुए लोग प्रॉपर आईएस प्रॉपर आईपीएस में नौकरी कर वाले लोग और इन तीनों ने अपना जीवन समाप्त कर लिया नौकरी में रहते हुए क्यों क्योंकि नौकरी और घरेलू जो दो विधाए थी उनको झेल नहीं पा रहे थे ना झेल पा रहे थे !
ना भूल पा रहे थे लेट गो नहीं कर पाए तो गिव अप कर दिया और इसलिए मुझे अक्सर लगता है कि चीज सिखाते हैं बच्चों को हिस्ट्री इकोनॉमिक्स लिटरेचर वह सब ठीक है उनका भी महत्व है शायद उससे ज्यादा महत्व इस चीज का है कि यह समझे कि अपने इमोशंस को कैसे मैनेज करना है जब जीवन में ऐसा लगे कि सब खत्म हो गया है जब जीवन में लगे कि बहुत टॉक्सिक किस्म की लाइफ हो गई है उससे बाहर कैसे निकले शायद यह सबसे महत्त्वपूर्ण लेसन होता है जो हम सबको सीखना चाहिए मैंने कहीं से सीखा नहीं है ना मैंने ऐसी किताबें पढ़ी है!
हालांकि मैंने दो किताबें मंगवाई है पिछले हफ्ते पढ़ी नहीं है अभी तक तो मैं किताबों के बेस में नहीं जानता कैसे सीखते हैं लेकिन जिंदगी से तुम सीख सकते हैं इन कहानियों का सबका एक ही सार है वजह अलग-अलग है एक व्यक्ति ने इसलिए अपना जीवन समाप्त किया कि वो रिश्ता उसके हाथ से छूट रहा था एक ने इसलिए जीवन समाप्त किया कि रिश्ता बन गया था पर समाज के दबाव घर के दबाव मैनेज नहीं कर पाए एक ने जिंदगी भर शादी नहीं की सिर्फ इसलिए कि वह पुरानी यादों को भूल नहीं पाया अरे एक बार गलती हो गई तो हो गई आगे तो संभावना जीवन में है !
भाई क्यों इतना हावी रखने उस दिमाग के ऊपर कुछ लोग देश की सबसे अच्छी नौकरी में होकर हर पैमाने पर सफलता की हर कसम खरा उतरने के बाद जीवन नहीं बचा पाए क्योंकि दूसरों की नजर में आप बहुत सफल हो जाए अपनी नजर में शुन्य हो तो फिर जीवन कैसे बने जीवन कैसे बचे इन सारी कहानियों का मूल भाव एक ही है अगर आप खुद को हैंडल नहीं कर सकते तो दुनिया को क्या हैंडल करेंगे दुनिया को हैंडल करने से पहले खुद को हैंडल करना सीखना पड़ता है और उसका सबसे आसान जो राम बाण उपाय है उसको बोलते हैं द आर्ट ऑफ लेटिंग गो जाने दो वह अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा साहिर ने लिखा
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